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कुष्मांडा देवी (Kushmanda Devi)

Kushmanda Devi

कुष्मांडा देवी आदिशक्ति माँ पार्वती की चौथी शक्ति रूप है. जब श्रृष्टि का स्वरुप नहीं था तो कुष्मांडा माता के द्वारा ही इस ब्रहमांड की रचना की गयी थी.

देवी कुष्मांडा ही इस श्रृष्टि की आदि स्वरुप और आदि शक्ति हैं.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कुष्मांडा देवी सूर्यमंडल के भीतर के लोक में निवास करती हैं. नवरात्रि के चौथे दिन कुष्मांडा माता के ही स्वरुप की पूजा अर्चना की जाती है.

कुष्मांडा देवी की कांति और तेज सूर्य के समान है. इस संसार के समस्त प्राणियों में जो तेज है वो माता कुष्मांडा के प्रभाव के कारण ही हैं.

माँ कुष्मांडा के तेज से यह संसार और दसों दिशाएँ प्रकाशमान है. कुष्मांडा देवी की आठ भुजाएं हैं. इस कारण से माता कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है.

कुष्मांडा देवी का वाहन सिंह है.

सुगमता से प्रसन्न होने वाली कुष्मांडा देवी अत्यंत ही दयालु हैं. अपने भक्तों पर तुरंत प्रसन्न हो जाती है. और अपनी कृपा अपने बच्चों पर बरसाती हैं माँ कुष्मांडा.

माता की कृपा से मनुष्य को समस्त रोगों और कष्टों से मुक्ति मिलती है. आयु, निरोगी काया, यश, बल माता कुष्मांडा की कृपा से प्राप्त होतीं हैं.

देवी कुष्मांडा की जय जयकार करें और चलें अब हम सब कुष्मांडा माता के कुछ मंत्रों और स्तोत्र का पाठ करतें हैं.

Kushmanda Mantra | कुष्मांडा मंत्र

Kushmanda Mantra

यहाँ दिया गया कुष्मांडा मंत्र मूल मंत्र है. एक माला अर्थात 108 बार इस मूल मंत्र का जाप अत्यंत ही शुभ फलदायक है.

ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥

कुष्मांडा देवी प्रार्थना मंत्र

मूल मंत्र के जाप के पश्चात आप अपनी, अपने परिवार,समाज, देश और इस श्रृष्टि के कल्याण के लिये निम्नलिखित मंत्रो का पाठ करते हुए कल्याण की प्रार्थना करें.

सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

Kushmanda Devi Stuti Mantra | कुष्मांडा देवी स्तुति मंत्र

निम्नलिखित मंत्रों के पाठ के साथ कुष्मांडा देवी की स्तुति करें.

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

कुष्मांडा देवी ध्यान मंत्र

कुष्मांडा देवी का ध्यान करें और निम्नलिखित मंत्रों का पाठ करें.

वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥

भास्वर भानु निभाम् अनाहत स्थिताम् चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पद्म, सुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥

पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥

प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कोमलाङ्गी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

Kushmanda Kavach – कुष्मांडा माता कवच

Kushmanda

यह एक सिद्ध कवच मंत्र है. कुष्मांडा कवच मंत्र के पाठ से मनुष्य की नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है.

साथ ही सूर्य के विपरीत स्थिति में होने के कारण अगर मनुष्य को कोई बाधा आ रही हो तो इस कुष्मांडा कवच के पाठ से उसकी रक्षा होती है.

हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिग्विदिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजम् सर्वदावतु॥

Kushmanda Devi Stotra | कुष्मांडा स्तोत्रम्

कुष्मांडा स्तोत्र का पाठ हमेशा ही शुभ फलदायक होता है. नवरात्रि में इस कुष्मांडा स्तोत्र के पाठ से चारों और सकारात्मक उर्जा प्रवाहित होने लगती है.

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहि दुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

जिन लोगों को सूर्य देव के ग्रह दोष के कारण कोई कष्ट हो रहा हो उन्हें कुष्मांडा माता की स्तुति करनी चाहिए और उनके मंत्र का जाप करना चाहिए. इससे उनकी ग्रह दशा ठीक होकर जीवन में सुख और शान्ति का आगमन होगा.

कुष्मांडा देवी से संबंद्धित जानकारी

नवरात्रि दिवसचतुर्थी
प्रभाव ग्रहसूर्य
पुष्पलाल रंग के
मंत्रॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
नवरात्रि में किस तिथि को कुष्मांडा देवी की पूजा अर्चना की जाती है?

कुष्मांडा देवी की पूजा अर्चना नवरात्रि में चौथे दिन अर्थात चतुर्थी तिथि को की जाती है.

कुष्मांडा देवी का निवास कहाँ माना गया है?

सूर्य मंडल के मध्य में कुष्मांडा देवी का निवास माना गया है.

कुष्मांडा देवी की कितनी भुजाएं हैं?

कुष्मांडा देवी की आठ भुजाएं हैं. इस कारण से इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है.

कुष्मांडा देवी की कथा

यहाँ हम कुष्मांडा देवी की कथा का विडियो दे रहें हैं. इस विडियो को आप यहीं देख सकतें हैं.

आशा है की हमारा यह प्रकाशन आप सभी को अच्छा लगा होगा. आप अपने अनमोल विचार हमें कमेंट में अवश्य लिखें.

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    Chandraghanta Mata @चंद्रघंटा माता मंत्र संग्रह

    Chandraghanta Mata (चंद्रघंटा माता) – इस अंक में हम आप सब माँ दुर्गा के भक्तों के लिये नवरात्रि तीसरे दिन की पूजा से संबंद्धित चंद्रघंटा माता मंत्र (Chandraghanta Mata Mantra) का संग्रह लाये हैं.

    इन मंत्रों की सहायता से आप सब माँ दुर्गा के तृतीय स्वरुप माँ चंद्रघंटा की आराधना और स्तुति कर पाएंगे.

    चंद्रघंटा माता नवदुर्गा में तीसरी शक्ति मानी जाती है.

    माता के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्धचन्द्र है, इस कारण से माता को चंद्रघंटा कहा जाता है.

    चंद्रघंटा माता का रूप अत्यंत ही शुभ, शांतिदायक और कल्याणकारी है. परम दयालु माता अपने भक्तों पर हमेशा कृपा करती है.

    चंद्रघंटा माता का शरीर स्वर्ण के समान देदीप्यमान है. माता के दस हाथ हैं. माँ सिंह की सवारी करतीं हैं.

    परम दयालु भक्तवत्सल माता चंद्रघंटा की आराधना और स्तुति करना अत्यंत ही शुभ और मंगलकारी होती है.

    Chandraghanta Mata Mantra (चंद्रघंटा माता मंत्र)

    Chandraghanta Mata

    यहाँ दिया गया मंत्र चंद्रघंटा माता का मूल मंत्र है. इस चंद्रघंटा माता मूल मंत्र का 108 या 1008 बार जाप करना अत्यंत ही मंगलकारी माना गया है.

    ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥

    स्तुति मंत्र (Stuti Mantra)

    मूल मंत्र के श्रद्धापूर्वक जाप के पश्चात आप सब निम्नलिखित माँ चंद्रघंटा स्तुति मंत्र (Maa Chandraghanta Stuti) के माध्यम से चंद्रघंटा की स्तुति करें.

    या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

    प्रार्थना मंत्र (Prarthana Mantra)

    यहाँ दिए गए चंद्रघंटा माता प्रार्थना मंत्र के माध्यम से अपनी, अपने सगे सम्बंद्धियो, समाज, देश और इस संसार के कल्याण के लिये माँ चंद्रघंटा से प्रार्थना करें.

    पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
    प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

    Chandraghanta Mata Dhyan Mantra (चंद्रघंटा माता ध्यान मंत्र)

    माँ चंद्रघंटा का हृदय में ध्यान करने के लिये आप निम्नलिखित चंद्रघंटा माता ध्यान मंत्र का पाठ करें. चंद्रघंटा माता का ध्यान करते समय अपना सम्पूर्ण ध्यान सांसारिक तत्वों से दूर करके सिर्फ और सिर्फ माता के चरणों में ही लगायें.

    वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
    सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम्॥

    मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
    खङ्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥

    पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
    मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥

    प्रफुल्ल वन्दना बिबाधारा कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
    कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

    चंद्रघंटा माता कवच मंत्र (Chandraghanta Mata Kavach Mantra)

    Maa Chandraghanta

    निम्नलिखित चंद्रघंटा माता कवच मंत्र (Chandraghanta Mata Kavach Mantra) एक अत्यंत ही सिद्ध कवच मंत्र है. नकारात्मक शक्तियों, अनिष्ट की आशंका आदि से रक्षा के लिये आप सम्पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ माँ चंद्रघंटा कवच मंत्र का पाठ करें.

    साथ ही माँ चंद्रघंटा का पूर्ण प्रभाव शुक्र ग्रह पर है. इस कारण से अगर कोई साधक शुक्र ग्रह के दोष के कारण दुर्भाग्य का सामना कर रहा है तो इस कवच मंत्र के पाठ से उस पर माँ चंद्रघंटा की कृपा होती है. और उस साधक की रक्षा होती है.

    रहस्यम् शृणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
    श्री चन्द्रघण्टास्य कवचम् सर्वसिद्धिदायकम्॥

    बिना न्यासम् बिना विनियोगम् बिना शापोध्दा बिना होमम्।
    स्नानम् शौचादि नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिदाम॥

    कुशिष्याम् कुटिलाय वञ्चकाय निन्दकाय च।
    न दातव्यम् न दातव्यम् न दातव्यम् कदाचितम्॥

    चंद्रघंटा माता स्तोत्र (Chadnraghanta Stotra)

    यहाँ हमने चंद्रघंटा माता स्तोत्र (Chadnraghanta Stotra) दिया हुआ है. सम्पूर्ण भक्तिपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करके माँ चंद्रघंटा की आराधना करें.

    आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
    अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥

    चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टम् मन्त्र स्वरूपिणीम्।
    धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥

    नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायिनीम्।
    सौभाग्यारोग्यदायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥

    सम्पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ माँ चंद्रघंटा की आराधना और स्तुति के बाद माँ चंद्रघंटा की आरती अवश्य करें.

    चंद्रघंटा माता (Goddess Chandraghanta)

    Goddess Chandraghanta

    माँ चंद्रघंटा देवी पारवती का ही स्वरुप है. मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करने के कारण इन्हें चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है.

    नवरात्रि में तीसरे दिन अर्थात तृतीया तिथि को माँ चंद्रघंटा की पूजा आरधना की जाती है.

    चंद्रघंटा माता ने भगवान शिव को पति रूप में वरण किया.

    शुक्र ग्रह पर माता चंद्रघंटा का प्रभाव है.

    इनकी दस भुजाएं है. इनका प्रिय पुष्प चमेली है.

    नवरात्रि दिवसतृतीया
    प्रभाव ग्रहशुक्र
    पुष्पचमेली
    मंत्रॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
    चंद्रघंटा माता की पूजा नवरात्रि में किस दिन की जाती है?

    नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्रघंटा माता की पूजा की जाती है.

    माँ चंद्रघंटा किस देवी का स्वरुप है?

    माँ चंद्रघंटा देवी पार्वती का स्वरुप है.

    चंद्रघंटा माता की कथा

    यहाँ हम चंद्रघंटा माता की कथा को लिखित रूप की वजय विडियो में दे रहें हैं. इस विडियो को आप यही देख सकतें हैं.

    आशा है की आप इस प्रकाशन से संतुष्ट हुए होंगे. किसी भी प्रकार के सुधार के लिये आप हमें कमेंट बॉक्स में लिखें.

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    Brahmacharini – ब्रह्मचारिणी माता मंत्र संग्रह

    Brahmacharini Mata (ब्रह्मचारिणी माता) – इस अंक में हमने ब्रह्मचारिणी माता से संबंद्धित संक्षिप्त विवरण के साथ-साथ ब्रह्मचारिणी माता की पूजा के लिये ब्रह्मचारिणी माता स्तुति मंत्र (Brahmacharini Mata Stuti Mantra),प्रार्थना मंत्र, ध्यान मंत्र, कवच मंत्र और स्तोत्र का प्रकाशन किया है.

    नवरात्रि के दुसरे दिन अर्थात द्वितीया तिथि को माँ दुर्गा के द्वितीय स्वरुप ब्रह्मचारिणी माता की पूजा आराधना की जाती है.

    Brahmacharini Mata (ब्रह्मचारिणी माता)

    Brahmacharini Mata

    नवरात्रि के दुसरे दिन यानी द्वितीया तिथि को ब्रह्मचारिणी माता की पूजा की जाती है. ब्रह्मचारिणी माता भी आदिशक्ति माँ पार्वती का ही एक रूप है.

    ब्रह्मचारिणी माता के नामकरण से संबंद्धित बात करें तो ब्रह्म शब्द का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी शब्द का अर्थ होता है, आचरण करने वाली, इस तरह से ब्रह्मचारिणी माता का शाब्दिक अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली.

    अथक तप के फलस्वरूप माँ ब्रह्मचारिणी ने महादेव शिव को पति रूप में वरण किया था.

    माँ ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल सुशोभित है.

    ग्रह गोचर से संबंद्धित चर्चा की जाए तो ब्रह्मचारिणी माता का मूल प्रभाव मंगल ग्रह पर है. इस कारण जिस मनुष्य को मंगल ग्रह की विपरीत स्थिति के कारण कष्ट सहना पड़ रहा हो तो तो उस मनुष्य को विशेष रूप से ब्रह्मचारिणी माता की पूजा आराधना करनी चाहिए.

    Brahmacharini Mata Mantra (ब्रह्मचारिणी माता मंत्र)

    Brahmacharini Mata

    यह ब्रह्मचारिणी माता का मूल मंत्र है. 108 बार अर्थात एक माला या 1008 बार इस मंत्र का जाप अत्यंत ही शुभ फलदायक माना गया है.

    जैसा की हमने ऊपर बताया हुआ है की मंगल ग्रह की विपरीत स्तिथि वाले मनुष्य को ब्रह्मचारिणी माता की आराधना विशेष रूप से करनी चाहिए.

    ब्रह्मचारिणी माता का यह मंत्र उन लोगों के लिये किसी वरदान से कम नहीं है.

    स्तुति मंत्र (Stuti Mantra)

    यहाँ हमने ब्रह्मचारिणी माता की स्तुति के लिये विशेष स्तुति मंत्र दिया हुआ है. मूल मंत्र के जाप के उपरान्त इस स्तुति मंत्र के पाठ के माध्यम से आप माँ दुर्गा के द्वितीय स्वरुप ब्रह्मचारिणी माता की स्तुति करें.

    प्रार्थना मंत्र (Prarthana Mantra)

    ब्रह्मचारिणी माता की ह्रदय से स्तुति करने के पश्चात आप इस दिए गए ब्रह्मचारिणी माता प्रार्थना मंत्र के माध्यम से अपनी, अपने परिवार, सगे संबंद्धि, समाज, राज्य, देश और इस धरा के साथ-साथ इस ब्रह्माण्ड के कल्याण के लिये ब्रह्मचारिणी माता से प्रार्थना करें.

    दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।
    देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

    ध्यान मंत्र (Dhyan Mantra)

    माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान करना इस पूजा का सबसे [प्रमुख भाग होता है. ह्रदय में माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान करते हुए आप निम्नलिखित मंत्र का पाठ करें.

    वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
    जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥

    गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
    धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम्॥

    परम वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन।
    पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

    Brahmacharini Mata Kavach Mantra (ब्रह्मचारिणी माता कवच मंत्र)

    सम्पूर्ण आसुरी शक्तियों, नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करने की शक्ति इस ब्रह्मचारिणी माता कवच मंत्र में है.

    इस कवच मंत्र का पाठ सच्चे ह्रदय से और पवित्र भाव से करें.

    त्रिपुरा में हृदयम् पातु ललाटे पातु शङ्करभामिनी।
    अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
    पञ्चदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥
    षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
    अङ्ग प्रत्यङ्ग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।

    Brahmacharini Mata Stotra (ब्रह्मचारिणी माता स्तोत्र)

    Brahmacharni

    निम्नलिखित स्तोत्र के पाठ के माध्यम से आप ब्रह्मचारिणी माता की स्तुति गान करें. यह एक सिद्ध स्तोत्र है. इस स्तोत्र के पाठ का फल अत्यंत ही सकारात्मक होता है.

    तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
    ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

    शङ्करप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
    शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

    सम्पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा आराधना करने के पश्चात आप सब माँ ब्रह्मचारिणी की आरती अवश्य करें.

    ब्रह्मचारिणी माता की कथा

    पोस्ट के अधिक विस्तृत होने के कारण हमने यहाँ ब्रह्मचारिणी माता की कथा को लिखित रूप में नही दिया है.

    आप निचे दिए गए विडियो को देख सकतें हैं.

    ब्रह्मचारिणी माता को किस देवी का स्वरुप माना जाता है?

    माँ ब्रह्मचारिणी को आदीशक्ति माँ पार्वती का रूप माना जाता है.

    नवरात्रि के किस तिथि को ब्रह्मचारिणी माता की पूजा आराधना की जाती है?

    नवरात्रि के दुसरे दिन अर्थात द्वितीया तिथि को ब्रह्मचारिणी माता की पूजा आराधना की जाती है.

    आप सबसे निवेदन है की कृप्या अपने अनमोल विचार कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखें.

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    Shailputri Mata Mantra – माँ दुर्गा के प्रथम स्वरुप शैलपुत्री माता की पूजा आराधना से संबंद्धित सम्पूर्ण शैलपुत्री माता मंत्र, कवच, स्तोत्र और आरती का संग्रह हमने इस पोस्ट में प्रकाशित किया है.

    आप इस प्रकाशन के माध्यम से शैलपुत्री माता की सम्पूर्ण भक्तिपूर्वक आराधना और स्तुति कर पायेंगे.

    सम्पूर्ण श्रद्धा के साथ माँ शैलपुत्री की आराधना और स्तुति अगर आप करतें हैं तो आप अवश्य ही शैलपुत्री माता की कृपा के पात्र होंगे.

    स्वागत कर रहें है आप सभी का dharm.info साईट पर.

    Goddess Shailputri

    Shailputri Mata Mantra शैलपुत्री माता मंत्र

    यह शैलपुत्री माता का मूल मंत्र है. आप 108 बार इस मंत्र का जाप करें.

    शैलपुत्री माता की स्तुति से संबंद्धित अन्य मंत्र आदि हमने आगे इस पोस्ट में दिए हैं. सबसे पहले हम माँ दुर्गा के प्रथम स्वरुप शैलपुत्री माता से संबंद्धित कुछ जानकारी प्राप्त कर लेतें हैं.

    शैलपुत्री माता (Shailputri Mata) – माँ दुर्गा की प्रथम स्वरुप

    जैसा की आप सभी भक्तजनों को ज्ञात है की नवरात्रि में हम सब दुर्गा माता के नौ रूपों की आराधना और स्तुति करतें हैं. माँ दुर्गा के इन नौ रूपों में शैलपुत्री माता प्रथम स्वरुप है.

    नवरात्रि के प्रथम दिवस हम सब शैलपुत्री माता की ही पूजा आराधना करतें हैं.

    शैलपुत्री माता का जन्म पर्वतराज हिमालय के यहाँ हुआ था. इस कारण से माता के इस स्वरुप को शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है. शैलपुत्री माता को पार्वती और हैमवती नाम से भी जाना जाता है.

    पूर्व के रूपों में माँ दुर्गा ने सती के रूप में दक्ष प्रजापति के यहाँ जन्म लिया था. और कठोर तपस्या के फलस्वरूप भगवान शिव की पति रूप में पाया था.

    सती से संबंद्धित कथा का आप सब को भली भांति ज्ञान होगा. यहाँ हम संक्षेप में उस कथा का विवरण दे रहें हैं.

    दक्ष प्रजापति के द्वारा एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया. उस यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया. सती अपने पिता के यहाँ विशाल यज्ञ होने की जानकारी पर बिना आमन्त्रण उस यज्ञ में सम्मिल्लित होने जाती है.

    उस यज्ञ में दक्ष प्रजापति के द्वारा भगवान शिव के प्रति अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया जाता है. माता सती को यह सहन नहीं होता है और वो यज्ञ की अग्नि में खुद को समर्पित कर देती है.

    बाद में सती पर्वतराज हिमालय के यहाँ शैलपुत्री रूप में जन्म लिया. शैलपुत्री रूप में भी उन्होंने महादेव शिव से ही विवाह किया.

    शैलपुत्री माता वृषभ पर सवार रहतीं हैं. इन्हें वृषारूढा भी कहा जाता है. शैलपुत्री माता के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित रहती है.

    अब हम माँ शैलपुत्री माता की आराधनाऔर स्तुति आरम्भ करतें हैं.

    स्तुति मंत्र

    Shailputri Mata Mantra

    आशा है की आपने ऊपर दिए गए मूल मंत्र का 108 बार जाप कर लिया होगा.

    इसके पश्चात आप निचे दिए गए शैलपुत्री माता स्तुति मंत्र (Shailputri Mata Stuti Mantra) के माध्यम से शैलपुत्री माता की स्तुति करें.

    या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

    प्रार्थना मंत्र

    उसके पश्चात आप सब अपने हाथों को प्रणाम की मुद्रा में जोड़कर शैलपुत्री माता से अपनी, अपने परिवार और इस संसार के कल्याण के लिये प्रार्थना करें.

    शैलपुत्री माता प्रार्थना मंत्र (Shailputri Mata Prarthna Mantra) का सम्पूर्ण श्रद्धा के साथ पाठ करें.

    वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
    वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

    ध्यान मंत्र

    शैलपुत्री माता का निचे दिए गए शैलपुत्री माता ध्यान मंत्र (Shailputri Mata Dhyan Mantra) का पाठ करते हुए हृदय में ध्यान करें.

    वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
    वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

    पूणेन्दु निभाम् गौरी मूलाधार स्थिताम् प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
    पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥

    प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
    कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥

    Shailputri Mata Kavach Mantra शैलपुत्री माता कवच मंत्र

    शैलपुत्री माता कवच मंत्र अत्यंत ही शक्तिशाली मंत्र है. इस मंत्र का प्रभाव अत्यंत ही व्यापक है. सम्पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ इस मंत्र का [पाठ करें.

    ॐकारः में शिरः पातु मूलाधार निवासिनी।
    हींकारः पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥

    श्रींकार पातु वदने लावण्या महेश्वरी।
    हुंकार पातु हृदयम् तारिणी शक्ति स्वघृत।
    फट्कार पातु सर्वाङ्गे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥

    Shailputri Mata Stotra शैलपुत्री माता स्तोत्र

    Shailputri

    यहाँ हमने शैलपुत्री माता की स्तुति के लिये शैलपुत्री स्तोत्र दिया हुआ है. इस स्तोत्र के पाठ के माध्यम से आप सब शैलपुत्री माता की आराधना करें.

    प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागरः तारणीम्।
    धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

    त्रिलोकजननी त्वंहि परमानन्द प्रदीयमान्।
    सौभाग्यरोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

    चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह विनाशिनीं।
    मुक्ति भुक्ति दायिनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

    हमारा आप सभी जानो से निवेदन है की आप निचे दिए गए प्रकाशन पर जाएँ और शैलपुत्री माता की आरती करें.

    शैलपुत्री माता की कथा

    यहाँ हमने शैलपुत्री माता की कथा का विडियो दिया हुआ है. आप इसे यहीं देख सकतें हैं.

    विडियो क्रेडिट – YouTube

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